करोड़ों खर्च फिर भी ठंड में नंगे पांव स्कूल आ रहे बच्चे
कौशाम्बी। परिषदीय स्कूलों में पढने वाले बच्चों को दिए गए जूते-मोजे के नाम पर लाखों रुपये के घोटाले की बू आ रही है। 1410 परिषदीय स्कूल में पंजीकृत एक लाख 61 हजार की छात्र के नाम पर तकरीबन 48 लाख का जूते-मोजे खरीद कर बंटवाने का दावा किया जा रहा है। इसके विपरीत बच्चे आज भी ठंड में नंगे पांव स्कूल आने को मजबूर हैं।
शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले के 1410 परिषदीय स्कूलों में एक लाख 61 हजार 187 बच्चों का पंजीकरण किया गया है। विभागीय सूत्रों की मानें तो जूता-मोजा की खरीद के नाम पर प्रति जोड़ी तीन सौ रुपये सरकारी खजाने से खर्च किए गए। इस लिहाज से देखा जाए तो सरकार का करीब चार करोड़ 80 लाख रुपये से ज्यादा जूता मोजा की खरीद पर खर्च हो गया। इसके बाद भी परिषदीय स्कूल के बच्चे ठंड के इस मौसम में नंगे पांव स्कूल आने के लिए मजबूर हैं। सोमवार को अमर उजाला की पड़ताल में पता चला कि स्कूलों में पंजीकरण तो बहुत है, लेकिन बच्चों की उपस्थिति काफी कम रहती है। मसलन जैसे चक सिरसी गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय 87 बच्चों का पंजीकरण था, लेकिन उपस्थिति सिर्फ 23 छात्रों की मिली। पूर्व माध्यमिक स्कूल चक सिरसी में 52 बच्चों के सापेक्ष सिर्फ 17 बच्चे मौजूद मिले। प्राथमिक विद्यालय गढ़ी में भी पंजीकृत 131 बच्चों के सापेक्ष 81 ही मौजूद मिले। दमद का पुरवा स्थित प्राइमरी में 120 बच्चों के सापेक्ष महज 93 ही मौजूद मिले। कुल मिलाकर जिले के स्कूलों में आने वाले छात्रों का औसत निकाला जाए तो 50 फीसदी के करीब ही बच्चे स्कूल आते हैं। जबकि शासन की तरफ से जिस संस्था को टेंडर मिला वहीं से पूरा माल पहुंचा। अब सिक्के का दूसरा पहलू ये है कि ज्यादातर स्कूल में बच्चों को जूता-मोजा दिया ही नहीं गया या फिर वह वितरण के महज दो माह में ही गुणवत्ता खराब होने के कारण फट गए। पूर्व माध्यमिक स्कूल चक सिरसी की छात्रा सरिता देवी ने बताया कि रोजाना स्कूल आने वाले ज्यादातर बच्चों के जूते फट गए हैं। प्राथमिक स्कूल के बच्चे भी नंगे पैर या हवाई चप्पल में दिखे। गढ़ी व दमद का पुरवा स्थित प्राथमिक स्कूल के बच्चे मंगलवार को चप्पल या नंगे पांव दिखे।
वहंी प्रभारी बीएसए स्वराज भूषण का कहना है कि खंड शिक्षा अधिकारियों ने ज्यादातर बच्चों को जूते-मोजे वितरित करने की रिपोर्ट दी है। इसके बाद भी बच्चे नंगे पाव स्कूल आ रहे हैं तो इसकी जांच कराई जाएगी। रहा सवाल गुणवत्ता का तो शासन की ओर से टेंडर किया गया है। स्थानीय स्तर से कुछ नहीं किया जा सकता है।
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