नई दिल्ली: 16 मई, 2022 । ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रह़मानी ने अपने प्रेस नोट में कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद बनारस, मस्जिद है और मस्जिद रहेगी, उसको मंदिर बनाने का कुप्रयास सांप्रदायिक घृणा पैदा करने की एक साजिश से ज़्यादा कुछ नहीं, यह ऐतिहासिक तथ्यों एवं कानून के विरुद्ध है। 1937 में दीन मुह़म्मद बनाम राज्य सचिव मामले में अदालत ने मौखिक गवाही और दस्तावेजों के आलोक में यह निर्धारित किया कि पूरा परिसर मुस्लिम वक़्फ़ की मिल्कियत है और मुसलमानों को इसमें नमाज़ अदा करने का अधिकार है, अदालत ने यह भी तय किया कि विवादित भूमि में से कितना भाग मस्जिद है और कितना भाग मंदिर है, उसी समय वज़ू ख़ाना को मस्जिद की मिल्कियत स्वीकार किया गया फिर 1991 ई0 में (Place of Worship Act 1991) संसद से पारित हुआ, जिसका सारांश यह है 1947 ई0 में जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में थे उन्हें उसी स्थिति में बनाए रखा जाएगा। 2019 ई0 में बाबरी मस्जिद मुक़दमे के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब सभी इबादतगाहें इस क़ानून के अधीन होंगी और यह क़ानून संविधान की मूलभावना के अनुसार है। इस निर्णय में और क़ानून का तक़ाज़ा यह था कि मस्जिद के संदेह में मंदिर होने के दावे को अदालत तत्काल बहिष्कृत (ख़ारिज) कर देती, लेकिन अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कि बनारस के दीवानी अदालत ने उस स्थान के सर्वे और वीडियोग्राफी का आदेश जारी कर दिया, ताकि तथ्यों का पता लगाया जा सके, वक़्फ़ बोर्ड ने इस सम्बंध में उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है और उच्च न्यायालय में यह मामला लम्बित है, इसी प्रकार ज्ञानवापी मस्जिद प्रशासन ने भी दीवानी अदालत के इस निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है और सुप्रीम कोर्ट में यह मामला विचाराधीन है, लेकिन इन सभी बातों को अनदेखा करते हुए दीवानी अदालत ने पहले सर्वे का आदेश दिया और फिर अफवाहों के आधार वज़ू ख़ाना को बंद करने का आदेश दिया, यह क़ानून का खुला उल्लंघन जिसकी एक अदालत से उम्मीद नहीं की जा सकती। अदालत की इस कार्रवाई ने न्याय की आवश्यकताओं का उल्लंघन किया है इसलिए सरकार इस निर्णय के कार्यान्वयन को तुरंत रोके, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करे और 1991 ई0 के क़ानून के अनुसार सभी धार्मिक स्थलों की रक्षा करे, यदि इस प्रकार के काल्पनिक तर्कों के आधार पर धार्मिक स्थलों की स्थिति परिवर्तित की जाएगी जाती है तो पूरे देश में अराजकता फैल जाएगी क्योंकि कितने बड़े-बड़े मन्दिर बौद्ध और जैन धर्म के धार्मिक स्थलों को परिवर्तित करके बनाए गए हैं और उनकी स्पष्ट निशानियाँ मौजूद हैं। मुसलमान इस उत्पीड़न को कदाचित बर्दाश्त नहीं कर सकते, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस अन्याय से हर स्तर पर लड़ेगा।
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