33 साल के सियासी सफर में सांप्रदायिक शक्ति को कुचलने वाले पूर्व सांसद क्यूं चुनाव से पीछे हटे.....? - शहरे अमन

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Feb 10, 2022

33 साल के सियासी सफर में सांप्रदायिक शक्ति को कुचलने वाले पूर्व सांसद क्यूं चुनाव से पीछे हटे.....?

प्रयागराज: 2022 विधानसभा चुनाव में इस बार प्रदेश की बहुचर्चित विधानसभा क्षेत्र इलाहाबाद के शहर पश्चिमी से पूर्व सांसद अतीक अहमद व उनके परिवार का कोई भी सदस्य चुनावी मैदान में नहीं उतरा यह महज़ इत्तेफाक नहीं बल्कि सोची समझी रणनीति का एक हिस्सा है की पांच बार के विधायक व एक बार के सांसद ने खुद व अपने घर वालों को इंतेखाबी मैदान से दूर रखा 33 साल के सियासी सफ़र में ऐसा पहली बार हो रहा है जब सियासत के मजबूत खिलाड़ी ने 2022 विधानसभा चुनाव में खुद को अलग रखा। हिमायतीयो की माने तो उन्होंने यह फैसला इसलिए किया की जबसे उन्होंने सियासत में कदम रखा तब से आज तक जब तक वह जिले में रहे कभी सांप्रदायिक शक्ति को उठने नहीं दिया और जब-जब उठने की कोशिश किया तब-तब पूरी मजबूती से फिरका परस्ती नाग के फन को कुचल डाला जिसकी वजह से इलाहाबाद को समाजवादीयों का गढ़ व शहर भी कहा जाने लगा था। यही कारण है कि तब से आज तक अतीक उनके निशाने पर रहे हालांकि कई बार ऐसे भी मौके आएं जब उन्हें मजबूर किया गया घुटने-टेकने को लेकिन हमेशा शेर की तरह दहाड़ने वाले इस शख्स ने अपने ज़मीर से समझौता नहीं किया और शायद उसी का ख़ामियाज़ा वह भूगत भी रहे हैं अपनी सियासी सफ़र में बहुत से उतार-चढ़ाव देखे और इस सफ़र में जिले से लेकर राज्य व केंद्र तक में अच्छी पैठ बना चुके अतीक की मकबूलियत ही उनकी सबसे बड़ी दुश्मन बनी जिसकी वजह से उनके करीबी लोग तो दुश्मन हुए हैं दिगर पार्टी के बड़े लीडर भी उनकी लोकप्रियता को नहीं देख पाए और फिर शुरू हुई साजिशें जो आज तक जारी है बावजूद इसके तमाम कोशिश लोगों ने किया कि इनका नाम गुमनामी के अंधेरे में खो जाए और चुनाव कभी ना लड़पाऐं वही आज सुर्खियों में बने हुए यह कम बड़ी बात नहीं है की इलाहाबाद की इस सियासी हस्ती का नाम मुल्क का बादशाह ग्रहमंत्री तक अपनी सभाओं में ले रहे हैं यह अलग बात है इनका नाम लेकर चुनावी नैया पार लगाना चाह रहे हैं। राज्य के सीएम भी उनको निशाने पर लिये है साथ ही शहर पश्चिमी के निवर्तमान विधायक अपनी सभा की शुरुआती अतीक के नाम से करते हैं और खत्म भी उन्हें लग रहा है कि यही एक नाम है जो विजय दिला सकता है शायद यही वजह है कि अतीक ने इस बार अपने रूह की आवाज़ को समझते हुए यह फैसला किया की इस बार क्षेत्र की जनता तय करेगी कि यहां से किसे बनाया जाए कामयाब यूं तो ओवैसी की पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया था पार्टी पदाधिकारी ने बाद में उनकी पत्नी के नाम पर मुहर लगाई पर हमेशा फिरका परस्त ताकतों को नेस्तनाबूद कर अमन का परचम लहराने वाले पूर्व सांसद ने खुद चुनावी मैदान में न उतर कर भी एक तरह से बाजी मार ली क्योंकि उन्हें महसूस हो रहा है कि हमारे उतरने से कमजोर हो रही सांप्रदायिक शक्ति फिर मजबूत हो सकती है इसलिए चुनाव से किनारा करना बेशकीमती हथियार है जिसका इस्तेमाल ऐसे मौके पर करना लाज़मी है वैसे कुछ राजनीतिज्ञ लोग इसका मतलब चाहे कुछ भी निकाले लेकिन इस सच्चाई से इंकार नहीं कर सकते कि फिरका परस्त ताकत को शिकस्त देना उनकी प्रथम प्राथमिकता हमेशा से रही है और आज भी। 
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